Hukamnama Sri Darbar Sahib Amritsar Ang-704, Date 16-09-25

 Amrit Vele da 

Hukamnama 

Sri Darbar Sahib

 Amritsar 

Ang-704,

 Date 16-09-25

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ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨

 ਛੰਤ 

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥

 ਸਲੋਕੁ ॥ 

ਊਚਾ ਅਗਮ ਅਪਾਰ ਪ੍ਰਭੁ ਕਥਨੁ ਨ ਜਾਇ ਅਕਥੁ ॥ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਗਤੀ ਰਾਖਨ ਕਉ ਸਮਰਥੁ ॥੧॥

 ਛੰਤੁ ॥ 

ਜਿਉ ਜਾਨਹੁ ਤਿਉ ਰਾਖੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰਿਆ ॥ ਕੇਤੇ ਗਨਉ ਅਸੰਖ ਅਵਗਣ ਮੇਰਿਆ ॥ ਅਸੰਖ ਅਵਗਣ ਖਤੇ ਫੇਰੇ ਨਿਤਪ੍ਰਤਿ ਸਦ ਭੂਲੀਐ ॥ ਮੋਹ ਮਗਨ ਬਿਕਰਾਲ ਮਾਇਆ ਤਉ ਪ੍ਰਸਾਦੀ ਘੂਲੀਐ ॥ ਲੂਕ ਕਰਤ ਬਿਕਾਰ ਬਿਖੜੇ ਪ੍ਰਭ ਨੇਰ ਹੂ ਤੇ ਨੇਰਿਆ ॥ ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਦਇਆ ਧਾਰਹੁ ਕਾਢਿ ਭਵਜਲ ਫੇਰਿਆ ॥੧॥

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ਅਰਥ: 

ਰਾਗ ਜੈਤਸਰੀ, ਘਰ ੨ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ‘ਛੰਤ’ (ਛੰਦ)। 

ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਇੱਕ ਹੈ ਅਤੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ ਮਿਲਦਾ ਹੈ। 

ਸਲੋਕੁ। 

ਹੇ ਨਾਨਕ! (ਆਖ-) ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਮੈਂ ਤੇਰੀ ਸਰਨ ਆਇਆ ਹਾਂ, ਤੂੰ (ਸਰਨ ਆਏ ਦੀ) ਰੱਖਿਆ ਕਰਨ ਦੀ ਤਾਕਤ ਰੱਖਦਾ ਹੈਂ। ਹੇ ਸਭ ਤੋਂ ਉੱਚੇ! ਹੇ ਅਪਹੁੰਚ! ਹੇ ਬੇਅੰਤ! ਤੂੰ ਸਭ ਦਾ ਮਾਲਕ ਹੈਂ, ਤੇਰਾ ਸਰੂਪ ਬਿਆਨ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ, ਬਿਆਨ ਤੋਂ ਪਰੇ ਹੈ।੧। 

ਛੰਤੁ। 

ਹੇ ਹਰੀ! ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਮੈਂ ਤੇਰਾ ਹਾਂ, ਜਿਵੇਂ ਜਾਣੋ ਤਿਵੇਂ (ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਤੋਂ) ਮੇਰੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰ। ਮੈਂ (ਆਪਣੇ) ਕਿਤਨੇ ਕੁ ਔਗੁਣ ਗਿਣਾਂ? ਮੇਰੇ ਅੰਦਰ ਅਣਗਿਣਤ ਔਗੁਣ ਹਨ। 

ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਮੇਰੇ ਅਣਿਗਣਤ ਹੀ ਔਗੁਣ ਹਨ, ਪਾਪਾਂ ਦੇ ਗੇੜਾਂ ਵਿਚ ਫਸਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹਾਂ, ਨਿੱਤ ਹੀ ਸਦਾ ਹੀ ਉਕਾਈ ਖਾ ਜਾਈਦੀ ਹੈ। 

ਭਿਆਨਕ ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਿਚ ਮਸਤ ਰਹੀਦਾ ਹੈ, ਤੇਰੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ ਹੀ ਬਚ ਸਕੀਦਾ ਹੈ। 

ਅਸੀਂ ਜੀਵ ਦੁਖਦਾਈ ਵਿਕਾਰ (ਆਪਣੇ ਵਲੋਂ) ਪਰਦੇ ਵਿਚ ਕਰਦੇ ਹਾਂ, ਪਰ, ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੂੰ ਸਾਡੇ ਨੇੜੇ ਤੋਂ ਨੇੜੇ (ਸਾਡੇ ਨਾਲ ਹੀ) ਵੱਸਦਾ ਹੈ। 

ਨਾਨਕ ਬੇਨਤੀ ਕਰਦਾ ਹੈ ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਸਾਡੇ ਉਤੇ ਮੇਹਰ ਕਰ, ਸਾਨੂੰ ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ ਸੰਸਾਰ-ਸਮੁੰਦਰ ਦੇ (ਵਿਕਾਰਾਂ ਦੇ) ਗੇੜ ਵਿਚੋਂ ਕੱਢ ਲੈ ॥੧॥

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जैतसरी महला ५ घरु २

 छंत 

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

 सलोकु ॥

 ऊचा अगम अपार प्रभु कथनु न जाइ अकथु ॥ नानक प्रभ सरणागती राखन कउ समरथु ॥१॥ 

छंतु ॥ 

जिउ जानहु तिउ राखु हरि प्रभ तेरिआ ॥ केते गनउ असंख अवगण मेरिआ ॥ असंख अवगण खते फेरे नितप्रति सद भूलीऐ ॥ मोह मगन बिकराल माइआ तउ प्रसादी घूलीऐ ॥ लूक करत बिकार बिखड़े प्रभ नेर हू ते नेरिआ ॥ बिनवंति नानक दइआ धारहु काढि भवजल फेरिआ ॥१॥

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अर्थ:

राग जैतसरी, घर २ में गुरु अर्जनदेव जी की बानी ‘छंद’ ।

अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा प्राप्त होता है।

 सलोकु। 

हे नानक! (कह) हे प्रभु! में तेरी सरन आया हूँ, तुम (सरन आए की) रक्षा करने की ताकत रखते हो। हे सब से ऊचे! 

हे अपहुच! हे बयंत! तू सब का मालिक है, तेरा सरूप बयां नहीं किया जा सकता, बयां से परे है।१। 

छंत। 

हे हरी! हे प्रभु! मैं तेरा हूँ, जैसे जानो वेसे (माया के मोह से) मेरी रक्षा करो। 

मैं (अपने) कितने अवगुण गिनू? मेरे अंदर अनगिनत अवगुण हैं। 

हे प्रभु! मेरे अनगिनत ही अवगुण हैं, पापों के घेरे में फसा रहता हूँ, रोज ही उकाई खा जाते हैं। भयानक माया के मोह में मस्त रहते हैं, तेरी कृपा से ही बच पाते हैं। 

हम जीव दुखदाई विकार (अपने तरफ से) परदे में करते हैं, परन्तु, हे प्रभु! तुम हमारे पास से भी पास बसते हो। नानक बनती करता है हे प्रभु! हमारे ऊपर कृपार कर, हम जीवों को संसार-सागर के (माया के) घेर से निकल ले॥१॥

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In English:

Jaitasaree mahalaa 5 gharu 2 chhantt

Ik-oamkkaari satigur prsaadi ||

Saloku ||

Uchaa agam apaar prbhu kathanu na jaai akathu || Naanak prbh sara(nn)aagatee raakhan kau samarathu ||1||

Chhanttu ||

Jiu jaanahu tiu raakhu hari prbh teriaa || Kete ganau asankkh avaga(nn) meriaa || Asankkh avaga(nn) khate phere nitaprti sad bhooleeai || Moh magan bikaraal maaiaa tau prsaadee ghooleeai || Look karat bikaar bikha(rr)e prbh ner hoo te neriaa || Binavantti naanak daiaa dhaarahu kaadhi bhavajal pheriaa ||1||

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Meaning: 

Jaitsree, Fifth Mehl, Second House,

 Chhant: 

One Universal Creator God. 

By The Grace Of The True Guru: Shalok: God is lofty, unapproachable and infinite. He is indescribable – He cannot be described. Nanak seeks the Sanctuary of God, who is all-powerful to save us. ||1||

 Chhant: Save me, any way You can; 

O Lord God, I am Yours. My demerits are uncountable; how many of them should I count? The sins and crimes I committed are countless; day by day, I continually make mistakes. I am intoxicated by emotional attachment to Maya, the treacherous one; by Your Grace alone can I be saved.

 Secretly, I commit hideous sins of corruption, even though God is the nearest of the near. Prays Nanak, shower me with Your Mercy, Lord, and lift me up, out of the whirlpool of the terrifying world-ocean. ||1||

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