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अहिंसा संयम और तप रूप धर्म उत्कृष्ट और मंगलकारी होता है: गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि

  अहिंसा संयम और तप रूप धर्म उत्कृष्ट और मंगलकारी होता है: गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि मरू प्रहार संवादाता /  अजमेर/      गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि इस संसार में बहुत सारे धर्म है और सभी धर्म के अपने-अपने शास्त्र भी है।हमारे भी 32 शास्त्र है। इनमें एक शास्त्र दसवेकालिक सूत्र। इस शास्त्र को साधु की माता भी कहा गया है। साधु बनने वाले को इसका अध्ययन करना आवश्यक माना जाता है। इस ग्रंथ की रचना आर्य प्रभव स्वामी जी के शिष्य आर्य शयमभव स्वामी ने अपने पुत्र मुनिराज का कम आयुष्य जानकर की थी। इसमें सब शास्त्रों की सर्वोच्च चीजों को एक स्थान पर लाने का प्रयास किया गया है। आज यह ग्रंथ संयमी आत्माओं के लिए एक पातेय रूप बन गया है।इसमें 10 अध्ययन वह 2 चूलिकाई दी गई है। द्रुमपुष्पिका नामक प्रथम अध्ययन की पहली गाथा में बताया गया है कि अहिंसा,संयम और तप रूप धर्म उत्कृष्ट और मंगलकारी है।जिस पुरुष का मन धर्म में लगा रहता है उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।  धर्म की परीक्षा करने के लिए तीन कसौटी दी गई है। अहिंसा संयम और तप। क्योंकि जहां हिंसा होती हो वहां पर धर्म नहीं होता है।जहां

चार दिवसीय श्यामा काली पूजा महोत्सव सम्पन्न, शोभायात्रा निकाली

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  चार दिवसीय श्यामा काली पूजा महोत्सव सम्पन्न, शोभायात्रा निकाली      बिजयनगर (अनिल जांगिड़)       बंगाली नवयुवक मंडल के तत्वावधान में चार दिवसीय श्री श्यामा काली पूजा महोत्सव का आयोजन 12 नवंबर से 15 नवंबर तक वैष्णव भवन परिसर में धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन कर आज भव्य शोभायात्रा के साथ मूर्ति विसर्जन किया गया। शोभायात्रा में ढोल नगाड़ों के साथ नाचते नाचते गाते हुए बंगाली समाज के बंधुओं ने हिस्सा लिया।          यह जानकारी देते हुए बंगाली नवयुवक मंडल बिजयनगर के अध्यक्ष डॉ ए के विश्वास ने बताया कि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी श्री श्यामा काली पूजा महोत्सव का आयोजन किया गया ।जिसमें मूर्ति प्रतिष्ठान,हवन पूजन, प्रातः काल व सायंकाल आरती  मूर्ति विसर्जन जुलूस निकाला जाएगा। इस शोभायात्रा में बंगाली नवयुवक मंडल बिजयनगर के उपाध्यक्ष रवि हलदर,, सचिव सुनील विश्वास, कोषाध्यक्ष निमाई सरकार, मंत्री गौतम पौडेल, मातृशक्ति अन्य सदस्य भी उपस्थित थे।
*आत्मा की पवित्रता  हेतु किया जाने वाला यज्ञ ही वास्तविक यज्ञ होता है: गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि* अजमेर ।  गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया की उत्तराध्यन सूत्र के 25 वे अध्ययन का नाम है यज्ञ। इस अध्ययन में सच्चे यज्ञ का स्वरूप बताया गया है।इसमें वाराणसी नगरी में रहने वाले दो ब्राह्मण भाइयों का वर्णन आता है। जय घोष को एक दृश्य को देखकर वैराग्य भाव जागृत होता है। उसने देखा एक मेंढक को खाने के लिए उसके पीछे सांप है। और सांप को खाने के लिए उसके पीछे एक कुरर नाम का पक्षी है। इस दृश्य से चिंतन चला कि मेरे पीछे भी इसी प्रकार मृत्यु लगी है, क्या मैं भी इस संसार से खाली हाथ ही चला जाऊंगा। तब एक संत का सहयोग मिलता है उनसे धर्म चर्चा करके वह उनके पास संयम जीवन को स्वीकार कर लेते हैं। मास मासखमण की तपस्या द्वारा अपने आप को भावित करते हैं।विचरण करते-करते एक बार वाराणसी पधारते हैं। वहां पर विजय घोष एक यज्ञ का आयोजन कर रहे थे। तब अपने संसार पक्षीय भाई को प्रतिबोध देने के लिए आहार के लिए जयघोष मुनि पधारते हैं तब जय घोष मुनि विजयघोष को समझाते हैं कि तुम जो यज्ञ कर रहे हो वह वास्तविक