अपनी प्रात: का शुभारंभ प्रभु परमात्मा, श्री हरि स्मरण से करिये HUKAMNAMA SRI DARBAR SAHIB AMRITSAR

 


अपनी  प्रात: का शुभारंभ  प्रभु परमात्मा, श्री हरि स्मरण से करिये  
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श्री हरमिन्दर साहिब (स्वर्ण मन्दिर) अमृतसर में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी  के अंग 607 दिनांक 02-05-2024  को  प्रात: जारी गुरुबाणी, अमृतवचन/हुकमनामा : पंजाबी, हिन्दी व अंग्रेजी में अर्थ सहित पढ़िए....
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Amrit vele da Hukamnama Sri Darbar Sahib, Amritsar, 

Ang 607, Date 02-05-2024

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ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੪ ॥ ਹਰਿ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਅੰਤਰੁ ਮਨੁ ਬੇਧਿਆ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਰਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥ ਜਿਉ ਮਛੁਲੀ ਬਿਨੁ ਨੀਰੈ ਬਿਨਸੈ ਤਿਉ ਨਾਮੈ ਬਿਨੁ ਮਰਿ ਜਾਈ ॥੧॥ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਜਲੁ ਦੇਵਹੁ ਹਰਿ ਨਾਈ ॥ ਹਉ ਅੰਤਰਿ ਨਾਮੁ ਮੰਗਾ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਨਾਮੇ ਹੀ ਸਾਂਤਿ ਪਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ ਜਿਉ ਚਾਤ੍ਰਿਕੁ ਜਲ ਬਿਨੁ ਬਿਲਲਾਵੈ ਬਿਨੁ ਜਲ ਪਿਆਸ ਨ ਜਾਈ ॥ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਲੁ ਪਾਵੈ ਸੁਖ ਸਹਜੇ ਹਰਿਆ ਭਾਇ ਸੁਭਾਈ ॥੨॥

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ਅਰਥ:
सोरठि महला ४ ॥ हरि सिउ प्रीति अंतरु मनु बेधिआ हरि बिनु रहणु न जाई ॥ जिउ मछुली बिनु नीरै बिनसै तिउ नामै बिनु मरि जाई ॥१॥ मेरे प्रभ किरपा जलु देवहु हरि नाई ॥ हउ अंतरि नामु मंगा दिनु राती नामे ही सांति पाई ॥ रहाउ ॥ जिउ चात्रिकु जल बिनु बिललावै बिनु जल पिआस न जाई ॥ गुरमुखि जलु पावै सुख सहजे हरिआ भाइ सुभाई ॥२॥
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Meaning:
Sorat’h, Fourth Mehl: The inner depths of my mind are pierced by love for the Lord; I cannot live without the Lord. Just as the fish dies without water, I die without the Lord’s Name. ||1|| O my God, please bless me with the water of Your Name. I beg for Your Name, deep within myself, day and night; through the Name, I find peace. ||Pause|| The song-bird cries out for lack of water – without water, its thirst cannot be quenched. The Gurmukh obtains the water of celestial bliss, and is rejuvenated, blossoming forth through the blessed Love of the Lord. ||2||

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ਹੇ ਭਾਈ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਨਾਲ ਪਿਆਰ ਦੀ ਰਾਹੀਂ ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਹਿਰਦਾ ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਮਨ ਵਿੱਝ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਪਰਮਾਤਮਾ (ਦੀ ਯਾਦ) ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਰਹਿ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ। ਜਿਵੇਂ ਪਾਣੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਮੱਛੀ ਮਰ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਤਿਵੇਂ ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਨਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਆਪਣੀ ਆਤਮਕ ਮੌਤ ਆ ਗਈ ਸਮਝਦਾ ਹੈ ॥੧॥ ਹੇ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭੂ! (ਮੈਨੂੰ ਆਪਣੀ) ਮੇਹਰ ਦਾ ਜਲ ਦੇਹ। ਹੇ ਹਰੀ! ਮੈਨੂੰ ਆਪਣੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਦੀ ਦਾਤਿ ਦੇਹ। ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ ਦਿਨ ਰਾਤ ਤੇਰਾ ਨਾਮ (ਹੀ) ਮੰਗਦਾ ਹਾਂ (ਕਿਉਂਕਿ ਤੇਰੇ) ਨਾਮ ਵਿਚ ਜੁੜਿਆਂ ਹੀ ਆਤਮਕ ਠੰਡ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਸਕਦੀ ਹੈ ॥ ਰਹਾਉ॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਜਿਵੇਂ ਵਰਖਾ-ਜਲ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਪਪੀਹਾ ਵਿਲਕਦਾ ਹੈ, ਵਰਖਾ ਦੀ ਬੂੰਦ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਉਸ ਦੀ ਤ੍ਰੇਹ ਨਹੀਂ ਮਿਟਦੀ, ਤਿਵੇਂ ਜੇਹੜਾ ਮਨੁੱਖ ਗੁਰੂ ਦੀ ਸ਼ਰਨ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ਉਹ ਤਦੋਂ ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਬਰਕਤਿ ਨਾਲ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਵਾਲਾ ਬਣਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਉਹ ਆਤਮਕ ਅਡੋਲਤਾ ਵਿਚ ਟਿਕ ਕੇ ਆਤਮਕ ਆਨੰਦ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਨਾਮ-ਜਲ (ਗੁਰੂ ਪਾਸੋਂ) ਹਾਸਲ ਕਰਦਾ ਹੈ ॥੨॥

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अर्थ: हे भाई! परमात्मा से प्यार के द्वारा जिस मनुख का हृदय जिस मनुख का मन भीग जाता है, वह परमात्मा (की याद) के बिना रह नहीं सकता। जैसे पानी के बिना मछली मर जाती है, उसी प्रकार मनुख प्रभु के नाम के बिना अपनी आत्मिक मौत आ गयी समझता है॥१॥ हे मेरे प्रभु! (मुझे अपनी) कृपा का जल दे। हे हरी! मुझे अपनी सिफत-सलाह की दात दे। मैं अपने हृदय में दिन रात तेरा नाम (ही) मांगता हूँ, (क्योंकि तेरे) नाम में जुड़ने से ही आत्मिक ठंडक प्राप्त हो सकती है॥रहाउ॥ हे भाई! जैसे वर्षा-जल के बिना पपीहा बिलकता है, वर्षा की बूँद के बिना उस की प्यास नहीं मिटती, उसी प्रकार जो मनुख गुरु की सरन आता है, तब वह प्रभु की बरकत से आत्मिक जीवन वाला बनता है, जब वह आत्मिक अडोलता में टिक के आत्मिक आनंद देने वाला नाम-जल (गुरु पास से) प्राप्त करता है॥२॥

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